हेलिकोबैक्टर पायलोरी संक्रमण (एच. पायलोरी) एक आम पेट से जुड़ी बीमारी है, जो एच. पायलोरी नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बैक्टीरिया दुनिया की लगभग 50% आबादी में पाया जाता है, लेकिन अधिकतर लोगों में यह बीमारी नहीं करता। यह संक्रमण विशेष रूप से बच्चों और शिशुओं में देखा जाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां स्वच्छता की स्थिति खराब होती है। यह बैक्टीरिया गंदे वातावरण में आसानी से पनपता है।

एच. पायलोरी तीव्र गैस्ट्राइटिस और पेप्टिक अल्सर का मुख्य कारण होता है। इसके लक्षणों में पेट दर्द, अपच, अचानक वजन घटना और उल्टी में खून आना शामिल हैं। इस संक्रमण का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है। हालांकि, यदि इसका इलाज न हो तो यह पेट के कैंसर का कारण भी बन सकता है।

एच. पायलोरी संक्रमण के कारण:

इस संक्रमण का सटीक कारण ज्ञात नहीं है क्योंकि एच. पायलोरी बैक्टीरिया पहले से ही शरीर में मौजूद हो सकता है। यह संक्रमण मुख्यतः निम्नलिखित तरीकों से फैलता है:

  • संक्रमित व्यक्ति से चुंबन द्वारा
  • संक्रमित व्यक्ति की उल्टी या मल के संपर्क से
  • दूषित पानी या भोजन के सेवन से

एच. पायलोरी संक्रमण के लक्षण:

जब तक एच. पायलोरी पेट की अंदरूनी परत को नुकसान नहीं पहुंचाता, तब तक इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते। लेकिन जब यह पेप्टिक अल्सर बना देता है, तब निम्नलिखित लक्षण देखे जाते हैं:

  • पेट में हल्का, सुस्त या जलन जैसा दर्द
  • अत्यधिक डकार और पेट फूलना
  • काला या गहरा रंग का मल
  • कमजोर पाचन तंत्र
  • मतली और उल्टी
  • भूख में कमी
  • मल में खून आना
  • निगलने में परेशानी
  • आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया

एच. पायलोरी संक्रमण के जोखिम कारक:

बच्चों में यह संक्रमण वयस्कों की तुलना में अधिक पाया जाता है क्योंकि वे सफाई का ध्यान नहीं रखते। इसके अलावा निम्नलिखित स्थितियाँ संक्रमण के खतरे को बढ़ाती हैं:

  • स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता
  • खराब स्वच्छता और सफाई
  • भीड़भाड़ वाली जगहों में रहना
  • संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना

एच. पायलोरी संक्रमण का निदान:

अगर किसी को लंबे समय तक पाचन संबंधी समस्याएं हों, तो डॉक्टर एच. पायलोरी की जांच कराने की सलाह देते हैं। इसके लिए निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं:

मल परीक्षण (स्टूल टेस्ट): मल के नमूने से बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाया जाता है।

रक्त परीक्षण (ब्लड टेस्ट): खून में एच. पायलोरी के खिलाफ बने एंटीबॉडी की जांच की जाती है।

यूरेया सांस परीक्षण (ब्रीथ टेस्ट): इसमें मरीज को विशेष द्रव्य पिलाकर दो बार सांस के नमूने लिए जाते हैं ताकि सांस में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर की तुलना की जा सके।

एंडोस्कोपी: जब अन्य टेस्ट से स्पष्ट जानकारी न मिले, तो एंडोस्कोपी से पेट, इसोफेगस और छोटी आंत का निरीक्षण किया जाता है।

एच. पायलोरी संक्रमण की जटिलताएं:

यदि समय पर इलाज न किया जाए, तो एच. पायलोरी संक्रमण गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है, जैसे:

  • आंतरिक रक्तस्राव (ब्लीडिंग)
  • पेट की दीवार में छेद (पैर्फोरेशन)
  • पेट का कैंसर (गैस्ट्रिक एडेनोकार्सिनोमा)

एच. पायलोरी संक्रमण का उपचार:

इस संक्रमण का इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है जो बैक्टीरिया को खत्म करती हैं। यदि यह संक्रमण कोई गंभीर लक्षण नहीं दे रहा हो, तो इसका इलाज हमेशा आवश्यक नहीं होता, जब तक कि कैंसर का खतरा अधिक न हो।

एच. पायलोरी संक्रमण से बचाव:

साफ-सफाई और अच्छी आदतें अपनाकर इस संक्रमण से बचा जा सकता है:

  • खाने से पहले और शौच के बाद हाथ धोना
  • साफ और उबला हुआ पानी पीना
  • स्वच्छ और अच्छे से पका हुआ भोजन करना
  • गंदे वातावरण से बचना

एच. पायलोरी संक्रमण आम होते हुए भी गंभीर हो सकता है। समय पर पहचान और सही इलाज से इससे पूरी तरह बचा और ठीक हुआ जा सकता है। जीवनशैली में थोड़ा सा बदलाव और स्वच्छता अपनाकर इससे बचाव संभव है।

(यह लेख कल्याणी कृष्णा, मुख्य कंटेंट संपादक द्वारा समीक्षित है)

लेखक प्रोफ़ाइल: प्रीति शर्मा

प्रीति शर्मा ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री प्राप्त की है और फ्लोरिडा से शॉर्ट-टर्म राइटिंग का सर्टिफिकेशन भी किया है। लगभग एक दशक के अनुभव के साथ, वह ब्यूटी, पशु देखभाल, और हेल्दी कुकिंग जैसे विषयों पर आकर्षक ब्लॉग लिखने में माहिर हैं। प्रीति वीडियो एडिटिंग टूल्स में दक्ष हैं और विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म्स पर रोचक और सूचनात्मक कंटेंट तैयार करती हैं।