सेरोटोनिन सिंड्रोम एक गंभीर स्थिति है जो तब होती है जब शरीर में सेरोटोनिन नामक रसायन असामान्य रूप से अधिक मात्रा में बनने लगता है। सेरोटोनिन एक प्राकृतिक रूप से बनने वाला न्यूरोट्रांसमीटर है, जो शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करता है। इस स्थिति को मेडिकल क्षेत्र में कई नामों से जाना जाता है, जैसे सेरोटोनिन टॉक्सिसिटी, सेरोटोनर्जिक सिंड्रोम, सेरोटोनिन शॉक, सेरोटोनिन सिकनेस और सेरोटोनिन स्टॉर्म। इस सिंड्रोम का मुख्य कारण ऐसे दवाइयों का अधिक मात्रा में सेवन करना होता है जो सेरोटोनिन के स्तर को प्रभावित करती हैं। इनमें प्रमुख रूप से अवसाद (डिप्रेशन) को ठीक करने के लिए दी जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाएं शामिल होती हैं। सेरोटोनिन, जिसे वैज्ञानिक भाषा में 5-हाइड्रॉक्सी ट्रिप्टामाइन (5-HT) कहा जाता है, मस्तिष्क, आंतों, खून की प्लेटलेट्स और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। इसका काम है मानसिक स्थिति को संतुलित रखना, खुशी और शांति की भावना देना, नींद, पाचन, सांस लेने, रक्त संचार, शरीर का तापमान और संज्ञानात्मक कार्यों को ठीक से चलाना।

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जब शरीर में सेरोटोनिन संतुलित मात्रा में बनता है, तब यह सभी कार्य अच्छे से होते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति एक ही दवा की अधिक मात्रा या एक साथ कई दवाएं लंबे समय तक लेता है, तो शरीर में सेरोटोनिन अत्यधिक मात्रा में बनने लगता है, जिससे सेरोटोनिन सिंड्रोम हो सकता है।

इस स्थिति के हल्के मामलों में सिरदर्द, ठंड लगना और दस्त जैसे लक्षण होते हैं। लेकिन गंभीर मामलों में दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो जाती है, मांसपेशियां जकड़ जाती हैं और दौरे भी पड़ सकते हैं। इसलिए इस सिंड्रोम के किसी भी लक्षण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

सेरोटोनिन सिंड्रोम के कारण

इस सिंड्रोम का सबसे आम कारण सेरोटोनिन बढ़ाने वाली दवाओं की अधिक खुराक लेना होता है, चाहे वो गलती से हो या जानबूझकर। इन दवाओं में प्रमुख रूप से एंटीडिप्रेसेंट, माइग्रेन की दवाएं, दर्द और सूजन कम करने की दवाएं, मतली और खांसी-जुकाम की दवाएं शामिल होती हैं।

इन दवाओं को केवल डॉक्टर की सलाह से और निर्धारित मात्रा में ही लेना चाहिए। यदि गलती से अधिक मात्रा में सेवन हो जाए, तो बिना देरी के डॉक्टर से मदद लेना जरूरी है।

इसके अतिरिक्त, धूम्रपान की आदत, निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपी की ज्यादा खुराक लेना और कोकीन जैसे मादक पदार्थों का सेवन भी सेरोटोनिन सिंड्रोम को ट्रिगर कर सकता है।

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लक्षण

सेरोटोनिन सिंड्रोम के लक्षण दवा लेने के कुछ घंटों या अधिकतम एक दिन के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसके मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:

  • अत्यधिक बेचैनी और घबराहट
  • मानसिक भ्रम या कंफ्यूजन
  • ब्लड प्रेशर का सामान्य से ज्यादा बढ़ जाना
  • दिल की धड़कन और नाड़ी का असामान्य रूप से तेज़ होना
  • आंखों की पुतलियों का फैल जाना
  • मांसपेशियों में जकड़न और लचक की कमी
  • अत्यधिक पसीना आना
  • तेज सिरदर्द
  • बुखार, ठंड और लगातार कंपकंपी
  • दस्त
  • त्वचा पर सिहरन और झुनझुनी महसूस होना

कुछ मामलों में यह स्थिति गंभीर रूप ले सकती है, जैसे दौरे पड़ना, मांसपेशियों का आंशिक लकवा, या बेहोशी। ऐसे में तुरंत आपातकालीन चिकित्सा सहायता लेना जरूरी होता है ताकि मरीज को समय रहते इलाज मिल सके।

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निदान

सेरोटोनिन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए कोई एक विशेष टेस्ट मौजूद नहीं है। डॉक्टर सबसे पहले मरीज की मेडिकल हिस्ट्री लेते हैं और यह पूछते हैं कि वे कौन-कौन सी दवाएं ले रहे हैं और कितनी मात्रा में।

इसके बाद खून और पेशाब की जांच, छाती का एक्स-रे, सीटी स्कैन और ब्रेन टेस्ट किए जाते हैं। कभी-कभी डॉक्टर स्पाइनल टैप या लंबर पंक्चर करके मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड निकालकर उसकी जांच करते हैं, जिससे यह पता चलता है कि कहीं शरीर के तंत्रिका या अन्य महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित तो नहीं हुए हैं।

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इलाज

सेरोटोनिन सिंड्रोम के इलाज की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि लक्षण कितने गंभीर हैं। यदि लक्षण हल्के हैं, जैसे सिरदर्द या पसीना आना, तो डॉक्टर दवा की खुराक कम करने या दवा पूरी तरह बंद करने की सलाह देते हैं।

अगर लक्षण गंभीर हैं, तो मरीज को अस्पताल में भर्ती किया जाता है या कई घंटे निगरानी में रखा जाता है। उन्हें मांसपेशियों को ढीला करने वाली दवाएं, ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट नियंत्रित करने वाली दवाएं और सेरोटोनिन का उत्पादन रोकने वाली दवाएं दी जाती हैं।

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साथ ही मरीज को ऑक्सीजन और ड्रिप के माध्यम से फ्लूइड दिए जाते हैं ताकि शरीर के जरूरी अंग सामान्य रूप से काम करते रहें। यह सारी प्रक्रियाएं मिलकर मरीज की स्थिति में सुधार लाती हैं और पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में मदद करती हैं।

सेरोटोनिन सिंड्रोम एक गंभीर लेकिन पूरी तरह से नियंत्रित होने वाली स्थिति है, बशर्ते समय पर पहचान हो और सही उपचार मिल सके। सेरोटोनिन से जुड़ी दवाओं को केवल डॉक्टर की सलाह से और तय मात्रा में ही लेना चाहिए। किसी भी असामान्य लक्षण के दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें ताकि किसी भी गंभीर स्थिति से बचा जा सके।

सावधानी और समय पर उपचार ही इस सिंड्रोम से बचने और ठीक होने का सबसे कारगर तरीका है।

(इस लेख की समीक्षा कल्याणी कृष्णा, मुख्य सामग्री संपादक द्वारा की गई है)

लेखक प्रोफ़ाइल: प्रीति शर्मा:

प्रीति शर्मा के पास फ्लोरिडा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और जनसंचार में स्नातकोत्तर और अल्पकालिक लेखन में प्रमाणन है। लगभग एक दशक के अनुभव के साथ, वह सौंदर्य, पशु चिकित्सा देखभाल और स्वस्थ खाना पकाने पर आकर्षक ब्लॉग तैयार करने में माहिर हैं। प्रीति वीडियो संपादन टूल में कुशल हैं और कई प्लेटफार्मों पर मनोरम और जानकारीपूर्ण सामग्री तैयार करती हैं।